BA Semester-5 Paper-1 Sanskrit - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2801
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 संस्कृत - वैदिक वाङ्मय एवं भारतीय दर्शन - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।

अथवा
कठोपनिषद् पर एक निबन्ध लिखिए।
अथवा
कठोपनिषद् की कथावस्तु बताइए।

उत्तर -

कठोपनिषद् कृष्ण यजुर्वेद की कठ शाखा के अन्तर्गत आता है। इस कारण उपनिषद् का नाम भी कठोपनिषद् पड़ गया। कठोपनिषद् का दूसरा नाम 'नचिकेतोपाख्यान' अथवा नचिकेतस उपाख्यान भी है। इसमें कुल दो अध्याय हैं। कुल छः बल्लियाँ हैं। इसका प्रथम अध्याय ही मूल उपनिषद है। दूसरा अध्याय बाद में जोड़ा गया है क्योंकि इसमें योग सम्बन्धी विकसित विचारों एवं भौतिक पदार्थों की असत्यता सम्बन्धी विचारों के कारण परवर्ती सन्निवेश जान पड़ता है। प्रथम अध्याय नचिकेता एवं यम के उपाख्यान द्वारा आत्मा और ब्रह्म की व्याख्या की गयी है। वाजश्रवा के पुत्र उद्दालक ने विश्वजीत यज्ञ किया जिसमें उन्होंने अपना सर्वस्व दान में देने का संकल्प लिया। उस यज्ञ में ऋषि, उद्दालक ने अपनी जीर्ण-शीर्ण गायों को भी दान कर दिया एवं उत्कृष्ट गायों को अपने पुत्र नचिकेता के लिए पृथक करके सुरक्षित कर लिया। बालक नचिकेता को यह रुचिकर न प्रतीत हुआ। उसने विचार किया कि ऐसा दान करने पर पिताजी को नरक मिलेगा। ऋषि के पुत्र नचिकेता ने यह देखकर बाल्य सुलभ चापल्य के कारण पिताजी से पूछा कि पिता जी ! आप मुझे किसको देंगे? नचिकेता के बार-बार पूछने पर पिता ने उसको झुंझलाहट के कारण आवेग में कहा कि मैं तुझे यम को देता हूँ। पिता जी के यह वचन सुनकर नचिकेता को दुःख नहीं हुआ। उसने सोचा कि ऐसा कौन सा कार्य है जो मैं यमराज के लिए कर सकता हूँ नचिकेता के पिता को अपने वचनों पर पश्चाताप हुआ। इधर नचिकेता ने निश्चय किया कि पिता का वचन असत्य नहीं होना चाहिए। अतः उसने पिता से कहा कि जैसे खेती उत्पन्न होती है और पक्षकार समाप्त हो जाती है तथा उसके अन्न से भी पुनः खेती होती है उसी प्रकार मानव जीवन भी बार-बार जन्म धारण करता है क्योंकि उसका शरीर नश्वर है। अन्त में नचिकेता यम के घर जाता है। उस समय यमराज वहाँ उपस्थित नहीं थे। नचिकेता तीन दिन तक भूखा-प्यासा उनके द्वार पड़ा रहा जैसे ही यमराज आए तो उसे भूखे-प्यासे ब्राह्मण बालक को देखकर उन्हें बहुत दुःख हुआ। यमराज ने नचिकेता का अतिथि सत्कार करके कहा कि आप तीन दिन तक बिना खाये-पिए मेरे द्वार पर पड़े रहे हैं अतः आप मुझसे तीन वर माँगों। नचिकेता ने प्रथम वर माँगा और कहा-

"मेरे पूज्य पिता जी प्रसन्न, क्रोध-शून्य और शान्तचेत्ता हो जायें और आपके पास से जब मैं लौटकर उनके समीप जाऊँ तो वे मेरे साथ प्रसन्नतापूर्वक बाते करें।' यमराज ने यह वर स्वीकार कर लिया और दूसरा वर माँगने को कहा। द्वितीय वर के रूप में नचिकेता ने स्वर्ग की साधनाभूत अग्नि विधा के ज्ञान को माँगा। यमराज जी ने स्वर्ग की साधनाभूत अग्नि विधा का उपदेश नचिकेता के लिए किया और नचिकेता को लोकोत्तर मेधाशक्ति से मुदित होकर उस अग्नि का नाम नचिकेता अग्नि ही कर दिया। इसके बाद उन्होंने नचिकेता से तीसरा वर माँगने को कहा। नचिकेता ने तीसरा वर माँगते हुए कहा- "मरने के बाद आत्मा रहती है - ऐसा कुछ बुधजन कहते हैं, अन्य कुछ बुधजनों का कहना है कि मरने के पश्चात् कुछ भी नहीं रहता। इसमें सत्य कौन सी बात है? इसका उपदेश मुझे भली-भाँति दीजिए।' नचिकेता के उक्त आत्म-विषयक प्रश्न को सुनकर यमराज ने पहले नचिकेता की आत्मज्ञान सीखने की योग्यता जाननी चाहिए। इसलिए यमराज ने नचिकेता के समक्ष अनेकों लुभावने आकर्षणों को प्रस्तुत कर उक्त वर न मांगने को कहा किन्तु नचिकेता ने उन आकर्षणों के प्रति उदासीन रहकर पुनः उसी वर को मांगा। नचिकेता को ब्रह्मविद्या का सच्चा पात्र मानकर तीसरे वर के उपदेश में यम ने कहना आरम्भ किया कि संसार में दो मार्ग हैं - श्रेय और प्रेय। इसमें श्रेय का फल मोक्ष है और प्रेय का फल सांसारिक भोग है। यमराज ने कहा कि परमतत्व को प्राप्त करने का साधन 'ओऽम्' पद है जिस 'ॐ' की उपासना से साधक गूढ़ तत्व का ज्ञान प्राप्त करता है वह 'ॐ' पद ही अक्षर ब्रह्म है। यह नित्य एवं सनातन है। इसे ज्ञान के द्वारा ही प्राप्त किया जा सकता है। यमराज ने यह बताया-

न जायते म्रियते वा विपश्चित् न्नायं कुतश्चिन्म बभूव कश्चित्। अजो नित्यः शाश्वतोऽपं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥

(आत्मा न तो उत्पन्न होती है और न उसकी मृत्यु होती है। वह शाश्वत और नित्य है। शरीर की मृत्यु या विनाश होता है, आत्मा का नहीं। न इसे कोई मार सकता है और न यह मरणशील है।)

आत्मा का स्वरूप विचित्र है। 'अणोरणीयान् महतो महीयान् अर्थात् वह आत्मा सूक्ष्म से भी सूक्ष्म है और महान् से भी महान् है। यमराज ने जीवात्मा और परमात्मा के रूप में आत्मा के दो भेद बताकर दोनों को छाया और धूप के समान बतलाया है। ये दोनों ही छाया और धूप के समान परस्पर सम्बद्ध हैं। यमराज ने नचिकेता से कहा-

'आत्मानं रथिनं विद्धि शरीरं रथमेव तु बुद्धिं तु सारथिं विद्धि मन प्रग्रहमेव च ॥

यह आत्मा सारथी है और शरीर रथ है। पाँच इन्द्रियां इस शरीर रूपी रथ को खींचने वाले घोड़े हैं। जो ज्ञानी पुरुष बुद्धि के द्वारा मन रूपी लगाम से इन्द्रिय रूपी घोड़े को वश में रखता है। वह इस भवसागर को पार कर परमपद को प्राप्त करता है। यह आत्मा-रूप, रस, गन्ध, स्पर्श, शब्द से रहित कूटस्थ, नित्य, अनादि और अनन्त है। इसे जानकर मनुष्य मृत्यु के बन्धन से मुक्त हो जाता है और परमतत्व को प्राप्त करता है। सांसारिक आवागमन एवं जन्म-मृत्यु के बन्धन से छुटकारा पा लेना ही मानव जीवन का लक्ष्य है। यह तभी सम्भव है जब हम अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान लें। इसके निमित्त आत्मज्ञान और ब्रह्मज्ञान रूपी साधन का आश्रय प्राप्त करना परमावश्यक है क्योंकि साधन के द्वारा ही साध्य को प्राप्त किया जा सकता है। मोक्ष की अवस्था को प्राप्त कर लेना ही मानव जीवन का प्रधान उद्देश्य है। इस स्थिति को प्राप्त कर मानव भगवान के उस आनन्द की अनुभूति करने लगता है जिसकी प्राप्ति के लिए वह सतत् प्रयत्नशील रहा करता है। जीवात्मा सत् एवं चित् है और परमात्मा सत्, चित एवं आनन्दस्वरूप है। दोनों में मात्र आनन्द का ही अन्तर है। जब इस आनन्द की अनुभूति मानव को होने लगती है तब वह अपने को भूल जाता है और उस चिरन्तन आनन्द की अनुभूति में अपने को लय कर देता है। इसी का नाम तन्मयावस्था है। मानव जीवन के इस लक्ष्य प्राप्ति का प्रधान साधन है आत्म-ज्ञान। उस आत्म-ज्ञान के साक्षात्कार का प्रधान साधन योग ही है। पतञ्जलि मुनि के सिद्धान्तानुसार 'योगश्चित्त- वृत्तिनिरोधाः अर्थात् अपनी चित्तवृत्तियों का विरोध कर लेना ही योग है। योग के इस सिद्धान्त के अनुसार मनुष्य को पहले अपने चित्त की एकाग्रता स्थापित करनी पड़ती है और जब मानव इस प्रकार के चित्त की एकाग्रता प्राप्त कर लेता है तब वह आत्मचिन्तन करने का अधिकारी होता है। इस अधिकारी की योग्यता प्राप्त कर लेने पर मनुष्य की प्रायः सम्पूर्ण सांसारिक अभिलाषायें शान्त हो जाती हैं और वह आत्म-ज्ञान की- उपलब्धि से अपने अज्ञान अथवा भाषा रूपी बन्धन को छिन्न-भिन्न कर अपने वास्तविक आत्म-स्वरूप के दर्शन के निमित्त प्रयत्नशील हो जाता है। एक समय आता है जब वह आत्मतत्व का दर्शन कर अपने सही स्वरूप का ज्ञान प्राप्त कर लेता है। ऐसी दशा में उसकी अपने शरीर के प्रति भी कोई किसी प्रकार की आकांक्षा अवशिष्ट नहीं रह जाती और वह अपने आपको इस माया जन्य संसार से अलग देखता है। जब इस प्रकार की अवस्था प्राप्त हो जाती है तब उसी को शास्त्रकारों ने जीवन मुक्ता अवस्था नाम से अभिहीत किया है। जब मानव को जीवन मुक्तावस्था प्राप्त हो जाती है, तब वह जीवन मुक्त कहलाता है, तब इस शरीर का त्याग हो जाने पर वह परम ब्रह्म परमात्मा के उस आनन्द की अनुभूति पूर्ण रूप से करने लगता है जिसके लिए वह निरन्तर प्रयत्नशील था और इस प्रकार वह सत् चित आनन्द स्वरूप होकर उस मोक्ष के आनन्द में लीन रहा करता है।

द्वितीय अध्याय में यमराज नचिकेता को आत्म-विषयक जानकारी प्रदान करता है। यमराज नचिकेता से कहता है कि मनुष्य की दो प्रकृति होती है - बर्हिमुखी और अन्तर्मुखी। जो इन्द्रियों एवं उनके विषयों में ध्यान लगाते हैं वे बर्हिमुखी प्रवृत्ति वाले हैं तथा जो इनसे भिन्न अन्तरात्मा की ओर ध्यान देते हैं वे अन्तर्मुखी हैं। धीर पुरुष ही अमृतत्व की इच्छा करता हुआ बर्हिमुखी इन्द्रियों को अन्तर्मुखी करके अन्तरात्मा का साक्षात्कार अमरत्व की प्राप्ति करता है।

यथोदकं शुद्धे शुद्धमासिक्त तादृगेव भवन्ति। एवं मुनेंः विजानत आत्मा भवति गौतम ॥

यम नचिकेता से कहता है कि उस विशुद्ध ज्ञान स्वरूप अजन्मा आत्मा का नगर ग्यारह दरवाजों वाला है। वह आत्मा सर्वव्यापी एवं सर्वगामी है। जिस प्रकार समस्त लोक का चक्षु एक ही सूर्य समाप्त लोक को प्रकाशित करता है और नेत्र सम्बन्धी बाहरी दोष से लिप्त नहीं होता उसी प्रकार समस्त प्राणियों में रहने वाला एक ही आत्मा संसारिक दुःखों से लिप्त नहीं होता। वह एक ही आत्मा सबके हृदय में स्थित एक ही रूप को अनेक रूप में बना देता है-

"तदेतदिति मन्यन्तेऽनिर्देश्यं परमं सुखम् कथं नु तद्विजानीयां किमु भांति विभाति वा ॥"

यमराज नचिकेता से कहता है कि यह जगत रूपी वृक्ष सनातन एवं अनादि है। इसकी जड़ें ऊपर की ओर और शाखाएँ नीचे की ओर हैं। यम कहता है कि इन्द्रियों से मन श्रेष्ठ है, मन से बुद्धि, बुद्धि से जीवात्मा, जीवात्मा से अव्यक्त प्रकृति, अव्यक्त प्रकृति से परमात्मा श्रेष्ठ है।

परमात्मा के ही प्रकाश से सूर्य, चन्द्र आदि तत्व प्रकाशित होते हैं। वही एकमात्र समस्त जगत को प्रकाशित करता है।

न तत्र सूर्यो भाति न चन्द्र तारकं नेमा विद्युतो भान्ति कुतोऽयमग्निः। तमेव भान्तमनुभाति सर्व तस्य भाषा सर्वमिदं विभाति ॥

जिस प्राणी के हृदय से सभी वासनाएँ एवं कामनाएँ नष्ट हो जाती हैं वह अमरता को प्राप्त करता है। इस प्रकार यमराज ने नचिकेता को आत्मा के विषय में पर्याप्त उपदेश दिया जिससे नचिकेता ब्रह्म विद्या को जानकर उसमें तल्लीन हो गया। नचिकेता जीवन-मरण के सभी बन्धन तोड़कर ब्रह्म को प्राप्त करने योग्य बन गया।

कठोपनिषद् में उस आत्म-साक्षात्कार के साधनों का विशेष रूप से वर्णन करते हुए उस सर्वश्रेष्ठ ब्रह्म का वर्णन अति सूक्ष्मता के साथ किया गया है जिसमें अमरता की प्राप्ति है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वेद के ब्राह्मणों का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- ऋग्वेद के वर्ण्य विषय का विवेचन कीजिए।
  3. प्रश्न- किसी एक उपनिषद का सारांश लिखिए।
  4. प्रश्न- ब्राह्मण साहित्य का परिचय देते हुए, ब्राह्मणों के प्रतिपाद्य विषय का विवेचन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वेदाङ्ग' पर एक निबन्ध लिखिए।
  6. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण पर एक निबन्ध लिखिए।
  7. प्रश्न- उपनिषद् से क्या अभिप्राय है? प्रमुख उपनिषदों का संक्षेप में विवेचन कीजिए।
  8. प्रश्न- संहिता पर प्रकाश डालिए।
  9. प्रश्न- वेद से क्या अभिप्राय है? विवेचन कीजिए।
  10. प्रश्न- उपनिषदों के महत्व पर प्रकाश डालिए।
  11. प्रश्न- ऋक् के अर्थ को बताते हुए ऋक्वेद का विभाजन कीजिए।
  12. प्रश्न- ऋग्वेद का महत्व समझाइए।
  13. प्रश्न- शतपथ ब्राह्मण के आधार पर 'वाङ्मनस् आख्यान् का महत्व प्रतिपादित कीजिए।
  14. प्रश्न- उपनिषद् का अर्थ बताते हुए उसका दार्शनिक विवेचन कीजिए।
  15. प्रश्न- आरण्यक ग्रन्थों पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- ब्राह्मण-ग्रन्थ का अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  17. प्रश्न- आरण्यक का सामान्य परिचय दीजिए।
  18. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए।
  19. प्रश्न- देवता पर विस्तृत प्रकाश डालिए।
  20. प्रश्न- निम्नलिखित सूक्तों में से किसी एक सूक्त के देवता, ऋषि एवं स्वरूप बताइए- (क) विश्वेदेवा सूक्त, (ग) इन्द्र सूक्त, (ख) विष्णु सूक्त, (घ) हिरण्यगर्भ सूक्त।
  21. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में स्वीकृत परमसत्ता के महत्व को स्थापित कीजिए
  22. प्रश्न- पुरुष सूक्त और हिरण्यगर्भ सूक्त के दार्शनिक तत्व की तुलना कीजिए।
  23. प्रश्न- वैदिक पदों का वर्णन कीजिए।
  24. प्रश्न- 'वाक् सूक्त शिवसंकल्प सूक्त' पृथ्वीसूक्त एवं हिरण्य गर्भ सूक्त की 'तात्त्विक' विवेचना कीजिए।
  25. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त की विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
  26. प्रश्न- हिरण्यगर्भ सूक्त में प्रयुक्त "कस्मै देवाय हविषा विधेम से क्या तात्पर्य है?
  27. प्रश्न- वाक् सूक्त का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  28. प्रश्न- वाक् सूक्त अथवा पृथ्वी सूक्त का प्रतिपाद्य विषय स्पष्ट कीजिए।
  29. प्रश्न- वाक् सूक्त में वर्णित् वाक् के कार्यों का उल्लेख कीजिए।
  30. प्रश्न- वाक् सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  31. प्रश्न- पुरुष सूक्त में किसका वर्णन है?
  32. प्रश्न- वाक्सूक्त के आधार पर वाक् देवी का स्वरूप निर्धारित करते हुए उसकी महत्ता का प्रतिपादन कीजिए।
  33. प्रश्न- पुरुष सूक्त का वर्ण्य विषय लिखिए।
  34. प्रश्न- पुरुष सूक्त का ऋषि और देवता का नाम लिखिए।
  35. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। शिवसंकल्प सूक्त
  36. प्रश्न- 'शिवसंकल्प सूक्त' किस वेद से संकलित हैं।
  37. प्रश्न- मन की शक्ति का निरूपण 'शिवसंकल्प सूक्त' के आलोक में कीजिए।
  38. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त में पठित मन्त्रों की संख्या बताकर देवता का भी नाम बताइए।
  39. प्रश्न- निम्नलिखित मन्त्र में देवता तथा छन्द लिखिए।
  40. प्रश्न- यजुर्वेद में कितने अध्याय हैं?
  41. प्रश्न- शिवसंकल्प सूक्त के देवता तथा ऋषि लिखिए।
  42. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। पृथ्वी सूक्त, विष्णु सूक्त एवं सामंनस्य सूक्त
  43. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त में वर्णित पृथ्वी की उपकारिणी एवं दानशीला प्रवृत्ति का वर्णन कीजिए।
  44. प्रश्न- पृथ्वी की उत्पत्ति एवं उसके प्राकृतिक रूप का वर्णन पृथ्वी सूक्त के आधार पर कीजिए।
  45. प्रश्न- पृथ्वी सूक्त किस वेद से सम्बन्ध रखता है?
  46. प्रश्न- विष्णु के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  47. प्रश्न- विष्णु सूक्त का सार लिखिये।
  48. प्रश्न- सामनस्यम् पर टिप्पणी लिखिए।
  49. प्रश्न- सामनस्य सूक्त पर प्रकाश डालिए।
  50. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। ईशावास्योपनिषद्
  51. प्रश्न- ईश उपनिषद् का सिद्धान्त बताते हुए इसका मूल्यांकन कीजिए।
  52. प्रश्न- 'ईशावास्योपनिषद्' के अनुसार सम्भूति और विनाश का अन्तर स्पष्ट कीजिए तथा विद्या अविद्या का परिचय दीजिए।
  53. प्रश्न- वैदिक वाङ्मय में उपनिषदों का महत्व वर्णित कीजिए।
  54. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के प्रथम मन्त्र का भावार्थ स्पष्ट कीजिए।
  55. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् के अनुसार सौ वर्षों तक जीने की इच्छा करने का मार्ग क्या है।
  56. प्रश्न- असुरों के प्रसिद्ध लोकों के विषय में प्रकाश डालिए।
  57. प्रश्न- परमेश्वर के विषय में ईशावास्योपनिषद् का क्या मत है?
  58. प्रश्न- किस प्रकार का व्यक्ति किसी से घृणा नहीं करता? .
  59. प्रश्न- ईश्वर के ज्ञाता व्यक्ति की स्थिति बतलाइए।
  60. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या में क्या अन्तर है?
  61. प्रश्न- विद्या एवं अविद्या (ज्ञान एवं कर्म) को समझने का परिणाम क्या है?
  62. प्रश्न- सम्भूति एवं असम्भूति क्या है? इसका परिणाम बताइए।
  63. प्रश्न- साधक परमेश्वर से उसकी प्राप्ति के लिए क्या प्रार्थना करता है?
  64. प्रश्न- ईशावास्योपनिषद् का वर्ण्य विषय क्या है?
  65. प्रश्न- भारतीय दर्शन का अर्थ बताइये व भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषतायें बताइये।
  66. प्रश्न- भारतीय दर्शन की आध्यात्मिक पृष्ठभूमि क्या है तथा भारत के कुछ प्रमुख दार्शनिक सम्प्रदाय कौन-कौन से हैं? भारतीय दर्शन का अर्थ एवं सामान्य विशेषतायें बताइये।
  67. प्रश्न- भारतीय दर्शन की सामान्य विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  68. प्रश्न- भारतीय दर्शन एवं उसके भेद का परिचय दीजिए।
  69. प्रश्न- चार्वाक दर्शन किसे कहते हैं? चार्वाक दर्शन में प्रमाण पर विचार दीजिए।
  70. प्रश्न- जैन दर्शन का नया विचार प्रस्तुत कीजिए तथा जैन स्याद्वाद की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  71. प्रश्न- बौद्ध दर्शन से क्या अभिप्राय है? बौद्ध धर्म के साहित्य तथा प्रधान शाखाओं के विषय में बताइये तथा बुद्ध के उपदेशों में चार आर्य सत्य क्या हैं?
  72. प्रश्न- चार्वाक दर्शन का आलोचनात्मक विवरण दीजिए।
  73. प्रश्न- जैन दर्शन का सामान्य स्वरूप बताइए।
  74. प्रश्न- क्या बौद्धदर्शन निराशावादी है?
  75. प्रश्न- भारतीय दर्शन के नास्तिक स्कूलों का परिचय दीजिए।
  76. प्रश्न- विविध दर्शनों के अनुसार सृष्टि के विषय पर प्रकाश डालिए।
  77. प्रश्न- तर्क-प्रधान न्याय दर्शन का विवेचन कीजिए।
  78. प्रश्न- योग दर्शन से क्या अभिप्राय है? पतंजलि ने योग को कितने प्रकार बताये हैं?
  79. प्रश्न- योग दर्शन की व्याख्या कीजिए।
  80. प्रश्न- मीमांसा का क्या अर्थ है? जैमिनी सूत्र क्या है तथा ज्ञान का स्वरूप और उसको प्राप्त करने के साधन बताइए।
  81. प्रश्न- सांख्य दर्शन में ईश्वर पर प्रकाश डालिए।
  82. प्रश्न- षड्दर्शन के नामोल्लेखपूर्वक किसी एक दर्शन का लघु परिचय दीजिए।
  83. प्रश्न- आस्तिक दर्शन के प्रमुख स्कूलों का परिचय दीजिए।
  84. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। श्रीमद्भगवतगीता : द्वितीय अध्याय
  85. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के अनुसार आत्मा का स्वरूप निर्धारित कीजिए।
  86. प्रश्न- 'श्रीमद्भगवद्गीता' द्वितीय अध्याय के आधार पर कर्म का क्या सिद्धान्त बताया गया है?
  87. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता द्वितीय अध्याय के आधार पर श्रीकृष्ण का चरित्र-चित्रण कीजिए?
  88. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय का सारांश लिखिए।
  89. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता को कितने अध्यायों में बाँटा गया है? इसके नाम लिखिए।
  90. प्रश्न- महर्षि वेदव्यास का परिचय दीजिए।
  91. प्रश्न- श्रीमद्भगवद्गीता का प्रतिपाद्य विषय लिखिए।
  92. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( आरम्भ से प्रत्यक्ष खण्ड)
  93. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं पदार्थोद्देश निरूपण कीजिए।
  94. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं द्रव्य निरूपण कीजिए।
  95. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं गुण निरूपण कीजिए।
  96. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या एवं प्रत्यक्ष प्रमाण निरूपण कीजिए।
  97. प्रश्न- अन्नम्भट्ट कृत तर्कसंग्रह का सामान्य परिचय दीजिए।
  98. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन एवं उसकी परम्परा का विवेचन कीजिए।
  99. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के पदार्थों का विवेचन कीजिए।
  100. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार प्रत्यक्ष प्रमाण को समझाइये।
  101. प्रश्न- वैशेषिक दर्शन के आधार पर 'गुणों' का स्वरूप प्रस्तुत कीजिए।
  102. प्रश्न- न्याय तथा वैशेषिक की सम्मिलित परम्परा का वर्णन कीजिए।
  103. प्रश्न- न्याय-वैशेषिक के प्रकरण ग्रन्थ का विवेचन कीजिए॥
  104. प्रश्न- न्याय दर्शन के अनुसार अनुमान प्रमाण की विवेचना कीजिए।
  105. प्रश्न- निम्नलिखित मंत्रों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए। तर्कसंग्रह ( अनुमान से समाप्ति पर्यन्त )
  106. प्रश्न- 'तर्कसंग्रह ' अन्नंभट्ट के अनुसार अनुमान प्रमाण की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
  107. प्रश्न- तर्कसंग्रह के अनुसार उपमान प्रमाण क्या है?
  108. प्रश्न- शब्द प्रमाण को आचार्य अन्नम्भट्ट ने किस प्रकार परिभाषित किया है? विस्तृत रूप से समझाइये।

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